।।ऊँ तस्मै ज्येष्ठाय ब्रम्हणे नम:।।


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ग्लोबलाईजेशन के इस युग में संपूर्ण विश्व आज जिस प्रकार की परिस्थितियों का सामना कर रहा है, उसमें वर्तमान विश्व के समस्त राष्ट्रों को राष्ट्रवाद की सीमाओं से ऊपर उठकर संपूर्ण विश्व के लिए सोचना होगा। वर्तमान समय में विश्व में अनेकों धर्ममत व अनेकों धर्मग्रंथ हैं, किंतु एकमात्र वेद को छोड़कर कोई भी धर्मग्रंथ ऐसा नहीं है जो विभिन्न राष्ट्रों में जीवन यापन कर रहे समस्त मानव को एक सूत्र में बांध सके। जैसे- परमात्मा ने समस्त मानवों को एक जैसा शरीर प्रदान किया है, सबके लिए हवा, पानी, भोजन एवं जीवन-यापन हेतु समान संसाधन प्रदान किए हैं, उसी प्रकार जीवन व्यवस्था भी प्रदान की है वेद का कथन है-
         ‘समान हो तुम्हारा पीने का पानी, एक साथ हो तुम्हारा अन्न भाग, एक ही जोड़े जाने वाले जवाड़े में साथ-साथ में मैं तुम सब को जोड़ता हूँ, एक साथ मिलकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले की उपासना करो, नाभि के चारों ओर आरो के समान’।
वेद समस्त मानव के लिए देशकाल निरपेक्ष मानव जीवन मूल्यों का निर्धारण करता है, वेद की शिक्षाएँ संपूर्ण विश्व के लोगों के लिए समान रूप से उपयोगी हैं।
         ‘एक साथ मिलकर चलो, एक साथ मिलकर समान वाणी बोलो, तुम्हारे मन एक साथ ज्ञान प्राप्त करें, दिव्य कर्म करने वालों के भाग्य का, पहले सामान्य ज्ञान रखने वाले सेवन करते हैं’।
उपरोक्त वेद मंत्रों के अर्थों से यह स्पष्ट ज्ञात होता है, कि वेद में समस्त मानवों को एक सूत्र में बांधने के लिए पर्याप्त मार्गदर्शन है, किंतु वर्तमान समय में जो ग्रंथ उपलब्ध है वह इस मार्गदर्शन को आधुनिक विश्व के जनसामान्य को आज समझ में आने वाली भाषा में पहुंचा सकने में असमर्थ है।
अतः मैं इस ब्लॉग के माध्‍यम से विश्व की अनेकों समस्याओं को ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की भावना से ध्यान में रखकर वेद के माध्यम से मानव जीवन से संबंधित वेद सम्मत ज्ञान द्वारा सुलझाने का प्रयास कर रहा हूँ।

…धन्यवाद